यह हमारी सनातन सभ्यता है । ताज महल और कुतुब मीनार की इनके सामने क्या औकात ।
मगर विडंबना तो देखिए घिनौने इतिहासकारों ने हमें सिर्फ मुगल साम्राज्य पढ़ाया है.
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मन्वन्तर हिन्दू धर्म अनुसार, मानवता के प्रजनक, की आयु होती है। यह समय मापन की खगोलीय अवधि है। मन्वन्तर एक संस्कॄत शब्द है, जिसका संधि-विच्छेद करने पर = मनु+अन्तर मिलता है। इसका अर्थ है मनु की आयु ।
प्रत्येक मन्वन्तर एक विशेष मनु द्वारा रचित एवं शासित होता है, जिन्हें ब्रह्मा द्वारा सॄजित किया जाता है। मनु विश्व की और सभी प्राणियों की उत्पत्ति करते हैं, जो कि उनकी आयु की अवधि तक बनती और चलती रहतीं हैं, उन मनु की मॄत्यु के उपरांत ब्रह्मा फ़िर एक नये मनु की सृष्टि करते हैं, जो कि फ़िर से सभी सृष्टि करते हैं। इसके साथ साथ विष्णु भी आवश्यकता अनुसार, समय समय पर अवतार लेकर इसकी संरचना और पालन करते हैं। इनके साथ ही एक नये इंद्र और सप्तर्षि भी नियुक्त होते हैं।
चौदह मनु और उनके मन्वन्तर को मिलाकर एक कल्प बनता है। यह ब्रह्मा का एक दिवस होता है। यह हिन्दू समय चक्र और वैदिक समयरेखा के नौसार होता है। प्रत्येक कल्प के अन्त में प्रलय आती है, जिसमें ब्रह्माण्ड का संहार होता है और वह विराम की स्थिति में आ जाता है, जिस काल को ब्रह्मा की रात्रि कहते हैं।
इसके उपरांत सृष्टिकर्ता ब्रह्मा फ़िर से सृष्टिरचना आरम्भ करते हैं, जिसके बाद फ़िर संहारकर्ता भगवान शिव इसका संहार करते हैं। और यह सब एक अंतहीन प्रक्रिया या चक्र में होता रहता है।
सृष्टि कि कुल आयु : 4320000000 वर्ष है, इसे कुल 14 मन्वन्तरों मे बाँटा गया है ।
वर्तमान मे 7वें मन्वन्तर अर्थात् वैवस्वत मनु चल रहा है. इस से पूर्व 6 मन्वन्तर जैसे स्वायम्भव, स्वारोचिष, औत्तमि, तामस, रैवत, चाक्षुष बीत चुके है और आगे सावर्णि आदि 7 मन्वन्तर भोगेंगे ।
1 मन्वन्तर = 71 चतुर्युगी
1 चतुर्युगी = चार युग (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग) = 1 महायुग
चारों युगों की आयु :--
सतयुग = 1728000 वर्ष
त्रेतायुग = 1296000 वर्ष
द्वापरयुग = 864000 वर्ष
कलियुग = 432000 वर्ष
इस प्रकार 1 चतुर्युगी की कुल आयु = 1728000+1296000+864000+432000 = 4320000 वर्ष ।
अत : 1 मन्वन्तर = 71 × 4320000(एक चतुर्युगी) = 306720000 वर्ष ।
चूंकि 6 मन्वन्तर बीत चुके है . इसलिए 6 मन्वन्तर की कुल आयु = 6 × 306720000 = 1840320000 वर्ष ।
वर्तमान मे 7 वें मन्वन्तर के भोग मे यह 28वीं चतुर्युगी है. इस 28वीं चतुर्युगी मे 3 युग अर्थात् सतयुग , त्रेतायुग, द्वापर युग बीत चुके है और कलियुग का 5115 वां वर्ष चल रहा है ।
27 चतुर्युगी की कुल आयु = 27 × 4320000(एक चतुर्युगी) = 116640000 वर्ष ।
और 28वें चतुर्युगी के सतयुग , द्वापर , त्रेतायुग और कलियुग की 5115 वर्ष की कुल आयु = 1728000+1296000+864000+5115 = 3893115 वर्ष ।
इस प्रकार वर्तमान मे 28 वें चतुर्युगी के कलियुग की 5115 वें वर्ष तक की कुल आयु = 27वे चतुर्युगी की कुल आयु + 3893115 = 116640000+3893115 = 120533115 वर्ष ।
इस प्रकार कुल वर्ष जो बीत चुके है = 6 मन्वन्तर की कुल आयु + 7 वें मन्वन्तर के 28वीं चतुर्युगी के कलियुग की 5115 वें वर्ष तक की कुल आयु = 1840320000+120533115 = 1960853115 वर्ष ।
अत: वर्तमान मे 1960853115 वां वर्ष चल रहा है और बचे हुए 2333226885 वर्ष भोगने है जो इस प्रकार है ।
सृष्टि की बची हुई आयु = सृष्टि की कुल आयु - 1960853115 = 2333226885 वर्ष |
यह गणना महर्षिदयानन्द रचित ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के आधार पर है.
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सनातन धर्म अपने मूल रूप हिंदू धर्म के वैकल्पिक नाम से जाना जाता है। वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म के लिये 'सनातन धर्म' नाम मिलता है। 'सनातन' का अर्थ है - शाश्वत या 'हमेशा बना रहने वाला', अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त। सनातन धर्म मूलत: भारतीय धर्म है, जो किसी ज़माने में पूरे वृहत्तर भारत (भारतीय उपमहाद्वीप) तक व्याप्त रहा है। विभिन्न कारणों से हुए भारी धर्मान्तरण के बाद भी विश्व के इस क्षेत्र की बहुसंख्यक आबादी इसी धर्म में आस्था रखती है। सिन्धु नदी के पार के वासियो को ईरानवासी हिन्दू कहते, जो 'स' का उच्चारण 'ह' करते थे। उनकी देखा-देखी अरब हमलावर भी तत्कालीन भारतवासियों को हिन्दू और उनके धर्म को हिन्दू धर्म कहने लगे। भारत के अपने साहित्य में हिन्दू शब्द कोई 1000 वर्ष पूर्व ही मिलता है, उसके पहले नहीं। हिन्दुत्व सनातन धर्म के रूप में सभी धर्मों का मूलाधार है क्योंकि सभी धर्म-सिद्धान्तों के सार्वभौम आध्यात्मिक सत्य के विभिन्न पहलुओं का इसमें पहले से ही समावेश कर लिया गया था।
सनातन धर्म जिसे हिन्दू धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहा जाता है और यह १९६०८५३११० साल का इतिहास हैं। भारत (और आधुनिक पाकिस्तानी क्षेत्र) की सिन्धु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं। इनमें एक अज्ञात मातृदेवी की मूर्तियाँ, शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएँ, लिंग, पीपल की पूजा, इत्यादि प्रमुख हैं।
प्राचीन काल में भारतीय सनातन धर्म में गाणपत्य, शैवदेव, कोटी वैष्णव, शाक्त और सौर नाम के पाँच सम्प्रदाय होते थे। गाणपत्य गणेशकी, वैष्णव विष्णु की, शैवदेव, कोटी शिव की, शाक्त शक्ति की और सौर सूर्य की पूजा आराधना किया करते थे। पर यह मान्यता थी कि सब एक ही सत्य की व्याख्या हैं। यह न केवल ऋग्वेद परन्तु रामायण और महाभारत जैसे लोकप्रिय ग्रन्थों में भी स्पष्ट रूप से कहा गया है। प्रत्येक सम्प्रदाय के समर्थक अपने देवता को दूसरे सम्प्रदायों के देवता से बड़ा समझते थे और इस कारण से उनमें वैमनस्य बना रहता था। एकता बनाए रखने के उद्देश्य से धर्मगुरुओं ने लोगों को यह शिक्षा देना आरम्भ किया कि सभी देवता समान हैं, विष्णु, शिव और शक्ति आदि देवी-देवता परस्पर एक दूसरे के भी भक्त हैं। उनकी इन शिक्षाओं से तीनों सम्प्रदायों में मेल हुआ और सनातन धर्म की उत्पत्ति हुई। सनातन धर्म में विष्णु, शिव और शक्ति को समान माना गया और तीनों ही सम्प्रदाय के समर्थक इस धर्म को मानने लगे। सनातन धर्म का सारा साहित्य वेद, पुराण, श्रुति, स्मृतियाँ, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, गीता आदि संस्कृत भाषा में रचा गया है।
कालान्तर में भारतवर्ष में मुसलमान शासन हो जाने के कारण देवभाषा संस्कृत का ह्रास हो गया तथा सनातन धर्म की अवनति होने लगी। इस स्थिति को सुधारने के लिये विद्वान संत तुलसीदास ने प्रचलित भाषा में धार्मिक साहित्य की रचना करके सनातन धर्म की रक्षा की।
जब औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन को ईसाई, मुस्लिम आदि धर्मों के मानने वालों का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिये जनगणना करने की आवश्यकता पड़ी तो सनातन शब्द से अपरिचित होने के कारण उन्होंने यहाँ के धर्म का नाम सनातन धर्म के स्थान पर हिंदू धर्म रख दिया।
यद्यपि आज सनातन का पर्याय हिन्दू है पर सिख, बौद्ध, जैन धर्मावलम्बी भी सनातन धर्म का हिस्सा हैं, क्योंकि बुद्ध भी अपने को सनातनी कहते हैं। यहाँ तक कि नास्तिक जोकि चार्वाक दर्शन को मानते हैं वह भी सनातनी हैं। सनातन धर्मी के लिए किसी विशिष्ट पद्धति, कर्मकांड, वेशभूषा को मानना जरुरी नहीं। बस वह सनातनधर्मी परिवार में जन्मा हो, वेदांत, मीमांसा, चार्वाक, जैन, बौद्ध, आदि किसी भी दर्शन को मानता हो बस उसके सनातनी होने के लिए पर्याप्त है।
सनातन धर्म की गुत्थियों को देखते हुए कई बार इसे कठिन और समझने में मुश्किल धर्म समझा जाता है। हालांकि, सच्चाई तो ऐसी नहीं है, फिर भी इसके इतने आयाम, इतने पहलू हैं कि लोगबाग कई बार इसे लेकर भ्रमित हो जाते हैं। सबसे बड़ा कारण इसका यह कि सनातन धर्म किसी एक दार्शनिक, मनीषा या ऋषि के विचारों की उपज नहीं है, न ही यह किसी ख़ास समय पैदा हुआ। यह तो अनादि काल से प्रवाहमान और विकासमान रहा। साथ ही यह केवल एक दृष्टा, सिद्धांत या तर्क को भी वरीयता नहीं देता।
विज्ञान जब प्रत्येक वस्तु, विचार और तत्व का मूल्यांकन करता है तो इस प्रक्रिया में धर्म के अनेक विश्वास और सिद्धांत धराशायी हो जाते हैं। विज्ञान भी सनातन सत्य को पकड़ने में अभी तक कामयाब नहीं हुआ है किंतु वेदांत में उल्लेखित जिस सनातन सत्य की महिमा का वर्णन किया गया है विज्ञान धीरे-धीरे उससे सहमत होता नजर आ रहा है।
हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान और मोक्ष की गहरी अवस्था में ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा के रहस्य को जानकर उसे स्पष्ट तौर पर व्यक्त किया था। वेदों में ही सर्वप्रथम ब्रह्म और ब्रह्मांड के रहस्य पर से पर्दा हटाकर 'मोक्ष' की धारणा को प्रतिपादित कर उसके महत्व को समझाया गया था। मोक्ष के बगैर आत्मा की कोई गति नहीं इसीलिए ऋषियों ने मोक्ष के मार्ग को ही सनातन मार्ग माना है।
आज का हिंदू मर चुका है क्योंकि हमारे मन में उथल-पुथल तब तक ही रहता है । जब तक यह वीडियो चल रहा होता है वीडियो खत्म होने के बाद कुछ करने की इच्छा जीवित नहीं रहती ।
कड़वा है मगर सत्य है ।