Wednesday, April 1, 2020

आर्यावर्त - हमारा भारतवर्ष

आर्यावर्त



पुराणों में आर्यावर्त "भारतवर्ष" के नाम से ही विशेषत: निर्दिष्ट है (विष्णुपुराण 2.3.1, मार्कंडेयपुराण 57.59 आदि)

आर्यावर्त का अर्थ होता है श्रेष्ठ जनों का निवास स्थान। भारतवर्ष की इस संपूर्ण धरती के मध्य में आर्यावर्त था जिसकी सीमाएं वक्त के साथ बदलती रही। यह मध्यभूमि सरस्वती के इस किनारे से लेकर सिंधु के उस किनारे तक फैली थी जिसके चलते सिंधु और सरस्वती सभ्यता का जन्म हुआ। वेदों में खासकर सिंधु और सरस्वती और इनकी सहायक नदियों का अधिक उल्लेख मिलता है। आर्यभूमि का विस्तार काबुल की कुंभा नदी से भारत की गंगा नदी तक और कश्मीर की की वादियों से नर्मादा के उस पार तक था। हालांकि हर काल में आर्यावर्त का क्षेत्रफल अलग-अलग रहा। प्राचीन काल में दक्षिण भारत में बहुत कभी ही भूमि रहने लायक थी बाकी संपूर्ण भूमि जंगल और जलाशय से पटी हुई थी।

सिन्धु की पश्चिम की ओर की सहायक नदियों- कुभा सुवास्तु, कुमु और गोमती का उल्लेख भी ऋग्वेद में है। इस नदी की सहायक नदियां- वितस्ता, चन्द्रभागा, ईरावती, विपासा और शुतुद्री है। इसमें शुतुद्री सबसे बड़ी उपनदी है।

सिन्धु के तट पर ही भारतीयों के पूर्वजों ने प्राचीन सभ्यता और धर्म की नींव रखी थी। सिन्धु घाटी में कई प्राचीन नगरों को खोद निकाला गया है। इसमें मोहनजोदड़ो और हड़प्पा प्रमुख हैं। सिन्धु घाटी की सभ्यता 3000 हजार ईसा पूर्व थी। ऋग्वेद में उल्लेख है की प्रथम मानव की उत्पत्ति वितस्ता नदी के किनारे हुई थी।

ऋग्वेद में सरस्वती का अन्नवती तथा उदकवती के रूप में वर्णन आया है। महाभारत में सरस्वती नदी के प्लक्षवती नदी, वेदस्मृति, वेदवती आदि कई नाम हैं। ऋग्वेद में सरस्वती नदी को 'यमुना के पूर्व' और 'सतलुज के पश्चिम' में बहती हुई बताया गया है।  महाभारत में सरस्वती नदी के मरुस्थल में 'विनाशन' नामक जगह पर विलुप्त होने का वर्णन है। इसी नदी के किनारे ब्रह्मावर्त था, कुरुक्षेत्र था, लेकिन आज वहां जलाशय है।

नदी का तल पूर्व हड़प्पाकालीन था और यह 4 हजार ईसा पूर्व के मध्य में सूखने लगी थी। अन्य बहुत से बड़े पैमाने पर भौगोलिक परिवर्तन हुए और 2 हजार ईसा पूर्व होने वाले इन परिवर्तनों के चलते उत्तर-पश्चिम की ओर बहने वाली ‍नदियों में से एक नदी गायब हो गई और यह नदी सरस्वती थी।

ऋग्वेद में आर्यों के निवास स्थान को 'सप्तसिंधु' प्रदेश कहा गया है। ऋग्वेद के नदीसूक्त (10/75) में आर्यनिवास में प्रवाहित होने वाली नदियों का वर्णन मिलता है, जो मुख्‍य हैं:- कुभा (काबुल नदी), क्रुगु (कुर्रम), गोमती (गोमल), सिंधु, परुष्णी (रावी), शुतुद्री (सतलज), वितस्ता (झेलम), सरस्वती, यमुना तथा गंगा। उक्त संपूर्ण नदियों के आसपास और इसके विस्तार क्षेत्र तक आर्य रहते थे।