Friday, December 10, 2021

आइए जानते हैं जगन्नाथ मंदिर के बारे में।


"जगन्नाथ मंदिर"   यहां गैर हिंदुओं का प्रवेश प्रतिबंधित है।







 @ The Frustrated Indian

Monday, November 8, 2021

द्वापर युग की विष्णु मूर्ति एवं मनुस्मृति।

कल्प विग्राह (KALPA  VIGRAHA) 




@ Indian Monkk


ये 26450 ईसा पूर्व की विष्णु जी की मूर्ति है, ये मूर्ति 1959 में नेपाल के लॉ मेन्थान्ग इलाके में एक बोद्ध भिक्षु को मिली, 47 ग्राम वजनी ये मूर्ति एक लकड़ी के बॉक्स में थी, कुछ ही समय में वहां अमेरिका से CIA के कमांडो के पास आयी और उन्होंने मूर्ति को अपने कब्जे में ले लिया।







बक्से को अपने कब्जे में ले कर उस पर लेबल लगाया गया “ST CIRCUS MUSTANG-0183” फिर इस को CIA ने अमेरिकन आर्मी बेस कैंप हेल,वेल के पास कोलाराडो में रखा, बॉक्स में से मूर्ति के साथ एक प्राचीन पांडुलिपि (MANUSCRIPT) भी मिली।





मूर्ति 5.3 cm लम्बी और लगभग 4.7 cm चोडी है, वजन 47 ग्राम, जिस बॉक्स में मूर्ति रखी गई थी वो भी विशेष धातु और लकड़ी का बना था। मूर्ति के नीचे शिव पर्वती जी की अकर्ति भी है। इन सब की कार्बन डेटिंग करने पर ये 26450 ईसा पूर्व की बताई गयी।




इस पुरे प्लान में सीआईए के निदेशक जॉन मैककन व्यक्तिगत रूप से शामिल थे।

इस मूर्ति के साथ पांडुलिपि का मिलना जिस में इस मूर्ति की उपयोगिता, इस का इस्तेमाल और इस का नाम भी लिखा है, इस मूर्ति का नाम का अनुवाद किया गया तो ये "कलपा महा-आयुष रसयान विग्रा" मिला, सीआईए ने इस का नाम "कालपा विग्राहा" रखा।


बोद्ध भिक्षु ने सीआईए को यह भी बताया कि अगर यह मूर्ति किसी तांबे के लोटे में पानी भर कर 9 दिन तक रखा जाये तो इस मूर्ति से पानी चार्ज हो जाता है। ये पानी पीने वाले की उम्र बहुत ज्यादा हो जाती है। सीआईए ने इस विधि को किया और पानी को अलग अलग प्रयोगशालाओं में भेजा गया, और सब प्रयोगशालाओं की रिपोर्ट सीधे सीआईए निदेशक, जॉन मैककॉन को भेजे गए ।


इस के बाद सीआईए ने एक टीम तैयार की (WATERING TEAM) जिन को ये पानी पीने को दिया गया। 1960 के आस पास ये प्रयोग किया गया। आज सब टीम के मेम्बर अपने पर पोतो के साथ हंसी ख़ुशी जीवन बिता रहे हैं, कल्प विग्रह के प्रयोग वाले सब कम से कम 110 वर्ष की आयु के पास हैं, कुछ नामो को छोड़ दिया जाये तो सब स्वस्थ और दीर्ध आयु वाले हैं, और जो मर गए उन में रूथ गोलोन्का, एक कार दुर्घटना से मर गई, विली ली मॉर्गन की हत्या कर दी गई थी। स्टीवन मार्टिन और बर्ट जेनकींस वियतनाम में मृत्यु हुयी थी ।


इन ही सदस्यों ने दुनिया को ये भी बताया की कल्प विग्रह 1996 में अपनी पाण्डुलिपि के साथ चोरी हो गयी सीआईए के पास से अमेरिका के आर्मी कैंप से। बहुत खोज हुयी हजारो लोगो से पूछताछ की गयी सरकारी, सेना के ऑफिसर से मगर मूर्ति नहीं मिली। लाखो डालर का इनाम भी रखा गया है । बहुत लोगो की हत्या भी हुयी है जिस में MICROBIOLOGY वाले अधिक हैं।

 

Tuesday, October 12, 2021

" देवी सरस्वती "

 

विद्या और बुद्धि की देवी  माता सरस्वती ।


सरस्वती हिन्दू धर्म की प्रमुख वैदिक एवं पौराणिक देवियों में से हैं। सनातन धर्म शास्त्रों में दो सरस्वती का वर्णन आता है एक ब्रह्मा पत्नी सरस्वती एवं एक ब्रह्मा पुत्री तथा विष्णु पत्नी सरस्वती। ब्रह्मा पत्नी सरस्वती मूल प्रकृति से उत्पन्न सतोगुण महाशक्ति एवं प्रमुख त्रिदेवियो मे से एक है एवं विष्णु की पत्नी सरस्वती ब्रह्मा के जिव्हा से प्रकट होने के कारण ब्रह्मा की पुत्री मानी जाती है कई शास्त्रों में इन्हें मुरारी वल्लभा (विष्णु पत्नी) कहकर भी संबोधन किया गया है। धर्म शास्त्रों के अनुसार दोनों देवियां ही समान नाम स्वरूप , प्रकृति ,शक्ति एवं ब्रह्मज्ञान-विद्या आदि की अधिष्ठात्री देवी मानी गई है इसलिए इनकी ध्यान आराधना में ज्यादा भेद नहीं बताया गया है।


ब्रह्म विद्या एवं नृत्य संगीत क्षेत्र के अधिष्ठाता के रूप में दक्षिणामूर्ति/नटराज शिव एवं सरस्वती दोनों को माना जाता है इसी कारण दुर्गा सप्तशती की मूर्ति रहस्य में दोनों को एक ही प्रकृति का कहा गया है अतः सरस्वती के १०८ नामों में इन्हें शिवानुजा(शिव की छोटी बहन) कहकर भी संबोधित किया गया है

कहीं-कहीं ब्रह्मा पुत्री सरस्वती को विष्णु पत्नी सरस्वती से संपूर्णतः अलग माना जाता है इस तरह मतान्तर मे तीन सरस्वती का भी वर्णन आता है। इसके अन्य पर्याय या नाम हैं वाणी, शारदा, वागेश्वरी , वेदमाता इत्यादि।


ये शुक्लवर्ण,शुक्लाम्बरा, वीणा-पुस्तक-धारिणी तथा श्वेतपद्मासना कही गई हैं। इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है। माघ शुक्ल पंचमी(श्रीपंचमी/बसंतपंचमी) को इनकी विशेष रूप से पूजन करने की परंपरा है । देवी भागवत के अनुसार विष्णु पत्नी सरस्वती वैकुण्ठ में निवास करने वाली है एवं पितामह ब्रह्मा की जिह्वा से जन्मी हैं तथा कहीं-कहीं ऐसा भी वर्णन आता है की नित्यगोलोक निवासी श्री कृष्ण भगवान के वंशी के स्वर से प्रकट हुई है। देवी सरस्वती का वर्णन वेदों के मेधा सूक्त मे,उपनिषदों, रामायण, महाभारत के अतिरिक्त कालिका पुराण, वृहत्त नंदीकेश्वर पुराण तथा शिव महापुराण, श्रीमद् देवी भागवत पुराण इत्यादि इसके अलावा ब्रह्मवैवर्त पुराण में विष्णु पत्नी सरस्वती का विशेष उल्लेख आया है।


पौराणिक कथा अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक काल में पितामह ब्रह्मा ने अपने संकल्प से ब्रह्मांड की तथा उनमें सभी प्रकार के जंघम-स्थावर जैसे पेड़-पौधे, पशु-पक्षी मनुष्यादि योनियो की रचना की। लेकिन अपनी सर्जन से वे संतुष्ट नहीं थे, उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है।

तब ब्रह्मा जी ने इस समस्या के निवारण के लिए अपने कमण्डल से जल अपने अंजली में लेकर संकल्प स्वरूप उस जल को छिड़कर भगवान श्री विष्णु की स्तुति करनी आरम्भ की। ब्रम्हा जी के किये स्तुति को सुन कर भगवान विष्णु तत्काल ही उनके सम्मुख प्रकट हो गए और उनकी समस्या जानकर भगवान विष्णु ने मूलप्रकृति आदिशक्ति माता का आव्हान किया। विष्णु जी के द्वारा आव्हान होने के कारण मूलप्रकृति आदिशक्ति वहां तुरंत ही ज्योति पुंज रूप मे प्रकट हो गयीं तब ब्रम्हा एवं विष्णु जी ने उन्हें इस संकट को दूर करने का निवेदन किया ।

ब्रम्हा जी तथा विष्णु जी बातों को सुनने के बाद उसी क्षण मूलप्रकृति आदिशक्ति के संकल्प से तथा स्वयं के अंश से श्वेतवर्णा एक प्रचंड तेज उत्पन्न किया जो एक दिव्य नारी के नारी स्वरूप बदल गया। जिनके हाथो में वीणा, वर-मुद्रा पुस्तक एवं माला एवं श्वेत कमल पर विराजित थी। मूल प्रकृति आदिशक्ति के शरीर से उत्पन्न तेज से प्रकट होते ही उस देवी ने वीणा का मधुरनाद किया जिससे समस्त राग रागिनिया संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब सभी देवताओं ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली उन देवी को ब्रह्म ज्ञान विद्या वाणी संगीत कला की अधिष्ठात्री देवी "सरस्वती" कहा गया।

फिर आदिशक्ति मूल प्रकृति ने पितामह ब्रम्हा से कहा कि मेरे तेज से उत्पन्न हुई ये देवी सरस्वती आपकी अर्धांगिनी शक्ति अर्थात पत्नी बनेंगी, जैसे लक्ष्मी श्री विष्णु की शक्ति हैं, शिवा शिव की शक्ति हैं उसी प्रकार ये सरस्वती देवी ही आपकी शक्ति होंगी। ऐसी उद्घोषणा कर मूलप्रकृति ज्योति स्वरूप आदिशक्ति अंतर्धान हो गयीं। इसके बाद सभी देवता सृष्टि के संचालन में संलग्न हो गए। 

सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा और वीणावादिनी सहित अनेक नामों से संबोधित जाता है। ये सभी प्रकार के ब्रह्म विद्या-बुद्धि एवं वाक् प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की अधिष्ठात्री देवी भी हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-


सरस्वती वंदना :

Friday, September 10, 2021

शिव तांडव स्तोत्रम

@ Times Music Spiritual


शिव तांडव स्तोत्र को रावण तांडव स्तोत्र के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस स्तोत्र का रचना रावण द्वारा की गई है। इस स्तोत्र में रावण ने 17 श्लोंको से भगवान शिव की स्तुति गाई है। जब एक बार अहंकारवश रावण नें कैलाश को उठाने का प्रयत्न किया तो भगवान शिव ने अपने अंगूठे से पर्वत को दबाकर स्थिर कर दिया। जिससे रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब गया। तब पीड़ा में रावण ने भगवान शिव की स्तुति की। रावण द्वारा गाई गई, यही स्तुति शिव तांडव स्तोत्र के नाम से जानी जाती है। शिव तांडव स्तोत्र का पाठ अन्य किसी भी पाठ की तुलना में भगवान शिव को अधिक प्रिय है। यह पाठ करने से भगवान शिव बहुत ही जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। यह स्तोत्र बहुत चमत्कारिक माना जाता है। तो चलिए जानते हैं शिव तांडव स्तोत्र के फायदे और पाठ करने की विधि...

  • जो मनुष्य शिवतांडव स्तोत्र द्वारा भगवान शिव की स्तुति करता है, उससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। नियमित रूप से शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से कभी भी धन-सम्पति की कमी नहीं होती है।
  • शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से साधक को साथ ही उत्कृष्ट व्यक्तित्व की प्राप्ति होती है। 
  • यह पाठ करने से व्यक्ति का चेहरा तेजमय होता है, आत्मबल मजबूत होता है। 
  •  शिवतांडव स्तोत्र का पाठ करने से मन की कामना पूर्ण हो जाती है। 
  • माना जाता है कि प्रतिदिन शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से वाणी की सिद्धि भी प्राप्त की जा सकती है। 
  • भगवान शिव नृत्य, चित्रकला, लेखन, योग, ध्यान, समाधी आदि सिद्धियों को प्रदान करने वाले हैं, इसलिए शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से इन सभी विषयों में सफलता प्राप्त होती है। 
  • शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से शनि दोष को कुप्रभावों से भी छुटकारा मिलता है। 
  • जिन लोगों की कुण्डली में सर्प योग, कालसर्प योग या पितृ दोष लगा हुआ हो। उन्हें भी शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। 


शिव तांडव स्तोत्र का हिंदी अनुवाद।


 जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजंग-तुंग-मालिकाम्ड मड्डमड्डमड्डम-न्निनादव-ड्डमर्वयं चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् ॥१॥

जिन शिव जी की सघन, वनरूपी जटा से प्रवाहित हो गंगा जी की धाराएँ उनके कंठ को प्रक्षालित करती हैं, जिनके गले में बड़े एवं लम्बे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं, तथा जो शिव जी डम-डम डमरू बजा कर प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें।


जटा-कटा-हसं-भ्रमभ्रमन्नि-लिम्प-निर्झरी- -विलोलवी-चिवल्लरी-विराजमान-मूर्धनि . धगद्धगद्धग-ज्ज्वल-ल्ललाट-पट्ट-पावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥

जिन शिव जी की जटाओं में अतिवेग से विलास पूर्वक भ्रमण कर रही देवी गंगा की लहरें उनके शीश पर लहरा रहीं हैं, जिनके मस्तक पर अग्नि की प्रचण्ड ज्वालायें धधक-धधक करके प्रज्वलित हो रहीं हैं, उन बाल चंद्रमा से विभूषित शिवजी में मेरा अनुराग प्रतिक्षण बढ़ता रहे।


धरा-धरेन्द्र-नंदिनीविलास-बन्धु-बन्धुर स्फुर-द्दिगन्त-सन्ततिप्रमोद-मान-मानसे .कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरापदि क्वचि-द्दिगम्बरे-मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

जो पर्वतराजसुता (पार्वती जी) के विलासमय रमणीय कटाक्षों में परम आनन्दित चित्त रहते हैं, जिनके मस्तक में सम्पूर्ण सृष्टि एवं प्राणीगण वास करते हैं, तथा जिनकी कृपादृष्टि मात्र से भक्तों की समस्त विपत्तियां दूर हो जाती हैं, ऐसे दिगम्बर (आकाश को वस्त्र सामान धारण करने वाले) शिवजी की आराधना से मेरा चित्त सर्वदा आनन्दित रहे।


जटा-भुजंग-पिंगल-स्फुरत्फणा-मणिप्रभा कदम्ब-कुंकुम-द्रवप्रलिप्त-दिग्व-धूमुखे  मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्त्व-गुत्तरी-यमे-दुरे मनो विनोदमद्भुतं-बिभर्तु-भूतभर्तरि ॥४॥

मैं उन शिवजी की भक्ति में आनन्दित रहूँ जो सभी प्राणियों के आधार एवं रक्षक हैं, जिनकी जटाओं में लिपटे सर्पों के फण की मणियों का प्रकाश पीले वर्ण प्रभा-समूह रूप केसर के कान्ति से दिशाओं को प्रकाशित करते हैं और जो गजचर्म से विभूषित हैं।


सहस्रलोचनप्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सरांघ्रि-पीठभूः भुजंगराज-मालया-निबद्ध-जाटजूटक: श्रियै-चिराय-जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः ॥५॥

जिन शिव जी के चरण इन्द्र-विष्णु आदि देवताओं के मस्तक के पुष्पों की धूल से रंजित हैं (जिन्हें देवतागण अपने सर के पुष्प अर्पण करते हैं), जिनकी जटाओं में लाल सर्प विराजमान है, वो चन्द्रशेखर हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।


ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनंजय-स्फुलिंगभा- निपीत-पंच-सायकं-नमन्नि-लिम्प-नायकम्  सुधा-मयूख-लेखया-विराजमान-शेखरं महाकपालि-सम्पदे-शिरो-जटाल-मस्तुनः ॥६॥

जिन शिव जी ने इन्द्रादि देवताओं का गर्व दहन करते हुए, कामदेव को अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से भस्म कर दिया, तथा जो सभी देवों द्वारा पूज्य हैं, तथा चन्द्रमा और गंगा द्वारा सुशोभित हैं, वे मुझे सिद्धि प्रदान करें।


कराल-भाल-पट्टिका-धगद्धगद्धग-ज्ज्वल द्धनंज-याहुतीकृत-प्रचण्डपंच-सायके  धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्रचित्र-पत्रक -प्रकल्प-नैकशिल्पिनि-त्रिलोचने-रतिर्मम ॥७॥

जिनके मस्तक से धक-धक करती प्रचण्ड ज्वाला ने कामदेव को भस्म कर दिया तथा जो शिव पार्वती जी के स्तन के अग्र भाग पर चित्रकारी करने में अति चतुर हैं (यहाँ पार्वती प्रकृति हैं, तथा चित्रकारी सृजन है), उन शिव जी में मेरी प्रीति अटल हो।


नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत् कुहू-निशी-थिनी-तमः प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः निलिम्प-निर्झरी-धरस्त-नोतु कृत्ति-सिन्धुरः कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥

जिनका कण्ठ नवीन मेघों की घटाओं से परिपूर्ण अमावस्या की रात्रि के सामान काला है, जो कि गज-चर्म, गंगा एवं बाल-चन्द्र द्वारा शोभायमान हैं तथा जो जगत का बोझ धारण करने वाले हैं, वे शिव जी हमे सभी प्रकार की सम्पन्नता प्रदान करें।


प्रफुल्ल-नीलपंकज-प्रपंच-कालिमप्रभा- -वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचिप्रबद्ध-कन्धरम् . स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकछिदं तमंतक-च्छिदं भजे ॥९॥

जिनका कण्ठ और कन्धा पूर्ण खिले हुए नीलकमल की फैली हुई सुन्दर श्याम प्रभा से विभूषित है, जो कामदेव और त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दुःखों को काटने वाले, दक्षयज्ञ विनाशक, गजासुर एवं अन्धकासुर के संहारक हैं तथा जो मृत्यू को वश में करने वाले हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ।


अखर्वसर्व-मंग-लाकला-कदंबमंजरी रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम् . स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥

जो कल्याणमय, अविनाशी, समस्त कलाओं के रस का आस्वादन करने वाले हैं, जो कामदेव को भस्म करने वाले हैं, त्रिपुरासुर, गजासुर, अन्धकासुर के संहारक, दक्षयज्ञ विध्भंसक तथा स्वयं यमराज के लिए भी यमस्वरूप हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ।


जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजंग-मश्वस- द्विनिर्गमत्क्रम-स्फुरत्कराल-भाल-हव्यवाट् धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंग-तुंग-मंगल ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥

अत्यंत वेग से भ्रमण कर रहे सर्पों के फूफकार से क्रमश: ललाट में बढ़ी हूई प्रचण्ड अग्नि के मध्य मृदंग की मंगलकारी उच्च धिम-धिम की ध्वनि के साथ ताण्डव नृत्य में लीन शिव जी सर्व प्रकार सुशोभित हो रहे हैं।


दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजंग-मौक्ति-कस्रजोर् -गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः . तृष्णार-विन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः समप्रवृतिकः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥

कठोर पत्थर एवं कोमल शय्या, सर्प एवं मोतियों की मालाओं, बहुमूल्य रत्न एवं मिट्टी के टुकड़ों, शत्रु एवं मित्रों, राजाओं तथा प्रजाओं, तिनकों तथा कमलों पर समान दृष्टि रखने वाले शिव को मैं भजता हूँ।


कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुंज-कोटरे वसन् विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मंजलिं वहन् . विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः शिवेति मंत्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥

कब मैं गंगा जी के कछारगुञ में निवास करता हुआ, निष्कपट हो, सिर पर अंजलि धारण कर चंचल नेत्रों तथा ललाट वाले शिव जी का मंत्रोच्चार करते हुए अक्षय सुख को प्राप्त करूंगा?


निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका- निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः। तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥

देवांगनाओं के सिर में गुंथे पुष्पों की मालाओं से झड़ते हुए सुगंधमय राग से मनोहर परम शोभा के धाम महादेव जी के अंगों की सुन्दरता परमानन्दयुक्त हमारे मन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहे।


प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना। विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५॥

प्रचण्ड वडवानल की भांति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्टमहासिध्दियों तथा चंचल नेत्रों वाली कन्याओं से शिव विवाह समय गान की मंगलध्वनि  सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित, संसारिक दुःखों को नष्ट कर विजय पायें।


इमम ही नित्यमेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि-मेति-संततम् . हरे गुरौ सुभक्तिमा शुयातिना न्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥

इस उत्तमोत्तम शिव ताण्डव स्तोत्र को नित्य पढ़ने या श्रवण करने मात्र से प्राणी पवित्र हो, परमगुरु शिव में स्थापित हो जाता है तथा सभी प्रकार के भ्रमों से मुक्त हो जाता है।


पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे . तस्य स्थिरां रथ गजेन्द्र तुरंग युक्तां लक्ष्मीं सदैवसुमुखिं प्रददाति शंभुः ॥१७॥

प्रात: शिवपूजन के अंत में इस रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्र के गान से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं तथा भक्त रथ, गज, घोड़े आदि सम्पदा से सर्वदा युक्त रहता है।

Monday, May 10, 2021

गायत्री मंत्र

अपने सनातन धर्म को जानिये और अपने बच्चों को भी सिखाइए। अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए यह बहुत ही आवश्यक है। 




आज हम गायत्री मंत्र के बारे में जानेंगे।

ॐ भूर् भुवः स्वः।तत् सवितुर्वरेण्यं।भर्गो देवस्य धीमहि।धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

हिन्दी में भावार्थ:

1.    सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं, परमात्मा का वह तेज हमारी बुद्धि को सद्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें।

2.    उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।


गायत्री महामंत्र वेदों का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है जिसकी महत्ता ॐ के लगभग बराबर मानी जाती है।

यह यजुर्वेद के मन्त्र 'ॐ भूर्भुवः स्वः' और ऋग्वेद के छन्द 3.62.10 के मेल से बना है।

इस मंत्र में सवितृ (सूर्य) देव की उपासना है इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है।

गायत्री' एक छन्द भी है जो ऋग्वेद के सात प्रसिद्ध छंदों में एक है। इन सात छंदों के नाम हैं- गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, विराट, त्रिष्टुप् और जगती। गायत्री छन्द में आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण होते हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में त्रिष्टुप् को छोड़कर सबसे अधिक संख्या गायत्री छंदों की है। गायत्री के तीन पद होते हैं (त्रिपदा वै गायत्री)।


यह लेख विभिन्न स्रोतों से लिया गया है इस लेख या लेख के किसी भाग में मूल शोध या अप्रमाणित दावे हो सकते हैं।

Sunday, April 11, 2021

हिंदुस्तान का कश्मीर और कश्मीर का हिंदू...

क्या कश्मीर से 370 हट जाने से सारी समस्याओं का अंत हो गया है हिंदुओं की पवित्र धरती कश्मीर अब करीब-करीब पूरी तरह हिंदू विहीन हो चुकी है ।

क्या कभी कश्मीरी हिंदू वापस कश्मीर जा सकेंगे और यदि चले भी गए तो क्या वहां सुरक्षित रह सकेंगे । 

प्रश्न यह है कि ऐसी परिस्थिति आई ही क्यों ।इस पोस्ट का उद्देश्य आपको सिर्फ यह बताना है कि 370 हटने से समस्या खत्म नहीं हुई ,  किसी भुलावे में ना रहें ।

अब कश्मीर से मुस्लिम कभी भी कम होने वाले नहीं बस यह सोचे कि हिंदुस्तान में और कितनी जगह पर ऐसी परिस्थिति बन रही है ।



@ Times Now

Thursday, March 11, 2021

श्री हनुमान चालीसा

श्री हनुमान चालीसा 


सभी हिंदू भाइयों को प्रतिदिन घर में हनुमान चालीसा सुनना चाहिए, साथ ही बच्चों को भी अवश्य सुनाना चाहिए...



 




Wednesday, February 10, 2021

Working Pattern of The Global Left Ecosystem


वैश्विक वामपंथी तंत्र की कार्य प्रणाली...








 

Monday, January 11, 2021

मेवात या एक नया पाकिस्तान...

यह मेवात है, हिंदुस्तान की धरती का का एक छोटा सा कोना 


बस अब इसे इस्लामिक देश घोषित करना ही बचा है, बाकी का कार्य शांतिप्रिय समुदाय ने पूरा कर लिया है ।


ऐसे न जाने कितने ही मेवात (मिनी पाकिस्तान) भारत की धरती पर जन्म ले चुके हैं




@ News Nation