Wednesday, September 21, 2022

जानिए वक्फ बोर्ड अधिनियम क्या है।

 हिंदुस्तान - पाकिस्तान बंटवारे के 75 वर्ष उपरांत भी हिंदुस्तान की भूमि पर मुसलमानों का प्रभुत्व क्यों और कैसे है ।


@ Zee News


Thursday, August 11, 2022

थूक "आस्था या जिहाद"।

 किसी भी मुस्लिम के यहां कुछ भी खाने या पीने से पहले बार बार सोचने की आवश्यकता है।



@ News 18 India

Friday, June 10, 2022

सप्तर्षि

सप्तर्षि (सप्त + ऋषि)

 

सप्तर्षि (सप्त + ऋषि) सात ऋषियों को कहते हैं जिनका उल्लेख वेद एवं अन्य हिन्दू ग्रन्थों में अनेकों बार हुआ है।

वेदों का अध्ययन करने पर जिन सात ऋषियों या ऋषि कुल के नामों का पता चलता है वे नाम क्रमश: इस प्रकार है:-

1. वशिष्ठ,     2. विश्वामित्र,     3. कण्व,     4. भारद्वाज,     5. अत्रि,     6. वामदेव,     7. शौनक।


इसके अलावा अन्य पुराणों के अनुसार सप्तऋषि की नामावली इस प्रकार है :-

1. क्रतु,    2. पुलह,     3. पुलस्त्य,     4. अत्रि,     5. अंगिरा,     6. वसिष्ठ,    7. मरीचि ।


महाभारत में सप्तर्षियों की दो नामावलियां मिलती हैं। एक नामावली में कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ के नाम आते हैं तो दूसरी नामावली के अनुसार सप्तर्षि - कश्यप, वशिष्ठ, मरीचि, अंगिरस, पुलस्त्य, पुलह और क्रतु हैं। कुछ पुराणों में कश्यप और मरीचि को एक माना गया है


पुराणों में सप्त ऋषि के नाम पर भिन्न-भिन्न नामावली मिलती है। विष्णु पुराण के अनुसार इस मन्वन्तर के सप्तऋषि इस प्रकार है :-


वशिष्ठकाश्यपोऽत्रिर्जमदग्निस्सगौतमः।

विश्वामित्रभरद्वाजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्।।


अर्थात् सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं :- 

1. वशिष्ठ,    2. कश्यप,    3. अत्रि,    4. जमदग्नि,    5. गौतम,    6. विश्वामित्र,    7. भारद्वाज।


1. वशिष्ठ :     राजा दशरथ के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ को कौन नहीं जानता। ये दशरथ के चारों पुत्रों के गुरु थे। वशिष्ठ के कहने पर दशरथ ने अपने दोनों पुत्रों (श्री राम एवं श्री लक्ष्मण) को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेज दिया था। कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध भी हुआ था। वशिष्ठ ने राजसत्ता पर अंकुश का विचार दिया तो उन्हीं के कुल के मैत्रावरूण वशिष्ठ ने सरस्वती नदी के किनारे सौ सूक्त एक साथ रचकर नया इतिहास बनाया।


2. कश्यप:      ऋषि प्राचीन वैदिक ॠषियों में प्रमुख ॠषि हैं जिनका उल्लेख एक बार ॠग्वेद में हुआ है। अन्य संहिताओं में भी यह नाम बहुप्रयुक्त है। इन्हें सर्वदा धार्मिक एंव रहस्यात्मक चरित्र वाला बतलाया गया है एंव अति प्राचीन कहा गया है। ऐतरेय ब्राह्मण के उन्होंने 'विश्वकर्मभौवन' नामक राजा का अभिषेक कराया था। ऐतरेय ब्राह्मणों ने कश्यपों का सम्बन्ध जनमेजय से बताया गया है। शतपथ ब्राह्मण में प्रजापति को कश्यप कहा गया है:

स यत्कुर्मो नाम। प्रजापतिः प्रजा असृजत। यदसृजत् अकरोत् तद् यदकरोत् तस्मात् कूर्मः कश्यपो वै कूर्म्स्तस्मादाहुः सर्वाः प्रजाः कश्यपः।

महाभारत एवं पुराणों में असुरों की उत्पत्ति एवं वंशावली के वर्णन में कहा गया है की ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक 'मरीचि' थे जिन्होंने अपनी इच्छा से कश्यप नामक प्रजापति पुत्र उत्पन्न किया। कश्यप ने दक्ष प्रजापति की १७ पुत्रियों से विवाह किया।


3. अत्रि :    ऋग्वेद के पंचम मण्डल के द्रष्टा महर्षि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र, सोम के पिता और कर्दम प्रजापति व देवहूति की पुत्री अनुसूया के पति थे। अत्रि जब बाहर गए थे तब त्रिदेव अनसूया के घर ब्राह्मण के भेष में भिक्षा माँगने लगे और अनुसूया से कहा कि जब आप अपने संपूर्ण वस्त्र उतार देंगी तभी हम भिक्षा स्वीकार करेंगे, तब अनुसूया ने अपने सतित्व के बल पर उक्त तीनों देवों को अबोध बालक बनाकर उन्हें भिक्षा दी। माता अनुसूया ने देवी सीता को पतिव्रत का उपदेश दिया था।

अत्रि ऋषि ने इस देश में कृषि के विकास में पृथु और ऋषभ की तरह योगदान दिया था। अत्रि लोग ही सिन्धु पार करके पारस (आज का ईरान) चले गए थे, जहाँ उन्होंने यज्ञ का प्रचार किया। अत्रियों के कारण ही अग्निपूजकों के धर्म पारसी धर्म का सूत्रपात हुआ। अत्रि ऋषि का आश्रम चित्रकूट में था। मान्यता है कि अत्रि-दम्पति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में जन्मे। ऋषि अत्रि पर अश्विनीकुमारों की भी कृपा थी।


4. जमदग्नि:    जनश्रुति के अनुसार महर्षि जमदग्नि ऋचीक के पुत्र और भगवान परशुराम के पिता थे। अरूणाचल प्रदेश में लोहित नदी के तट पर ही परशुराम कुण्ड स्थित है। पौराणिक मान्यता अनुसार परशुराम अपनी माता रेणुका की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए यहां आए थे। इस कुण्ड में स्नान के बाद वे मां की हत्या के पाप से मुक्त हुए थे। इस संदर्भ में पौराणिक आख्यान है कि किसी कारण वश परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि अपनी धर्मपत्नी रेणुका पर कुपित हो गए। उन्होंने तत्काल अपने पुत्रों को रेणुका का वध करने का आदेश दे दिया। लेकिन उनके आदेश का पालन करने के लिए कोई पुत्र तैयार नहीं हुआ। परशुराम पितृभक्त थे, जब पिता ने उनसे कहा तो उन्होंने अपने फरसे से मां का सर धड़ से अलग कर दिया। इस आज्ञाकारिता से प्रसन्न पिता ने जब वर मांगने को कहा तो परशुराम ने माता को जीवित करने का निवेदन किया। इस पर जमदग्नि ऋषि ने अपने तपोबल से रेणुका को पुन: जीवित कर दिया।


5. गौतम:    गौतम वैदिक काल के एक महर्षि एवं मन्त्रद्रष्टा थे। ऋग्वेद में उनके नाम से अनेक सूक्त हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार पत्नी अहिल्या थीं जो प्रातःकाल स्मरणीय पंच कन्याओं गिनी जाती हैं। अहिल्या ब्रह्मा की मानस पुत्री थी जो विश्व मे सुंदरता में अद्वितीय थी। हनुमान की माता अंजनी गौतम ऋषी और अहिल्या की पुत्री थी। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने देवताओं द्वारा तिरस्कृत होने के बाद अपनी दीक्षा गौतम ऋषि से पूर्ण की थी। ऋषिओं के इर्श्या वश गोहत्या का झूठा आरोप लगाने के बाद बारह ज्योतिर्लिंगों मैं महत्वपूर्ण त्रयम्बकेश्वर महादेव नाशिक भी गौतम ऋषि की कठोर तपस्या का फल है जहाँ गंगा माता गौतमी अथवा गोदावरी नाम से प्रकट हुईं।

इसके अतिरिक्त राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में स्तिथ गौतमेश्वर महादेव तीर्थ में स्तिथ मंदाकिनी गंगा कुंड के बारे में भी मान्यता है कि इसी कुंड में स्नान करने के पश्चात महर्षि गौतम को गौ हत्या के दोष से मुक्ति मिली थी इसके पश्चात महर्षि गौतम ने यहाँ महादेव की आराधना करके एक स्वयंभू शिवलिंग प्रकट किया था जो आज भी उन्ही के नाम पर गौतमेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है


6. विश्वामित्र :    ऋषि होने के पूर्व विश्वामित्र राजा थे और ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को हड़पने के लिए उन्होंने युद्ध किया था, लेकिन वे हार गए। इस हार ने ही उन्हें घोर तपस्या के लिए प्रेरित किया। विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या भंग करने की कथा जगत प्रसिद्ध है। विश्वामित्र ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था। इस तरह ऋषि विश्वामित्र के असंख्य क़िस्से हैं।

माना जाता है कि हरिद्वार में आज जहाँ शांतिकुंज हैं उसी स्थान पर विश्वामित्र ने घोर तपस्या करके इंद्र से रुष्ठ होकर एक अलग ही स्वर्ग लोक की रचना कर दी थी। विश्वामित्र ने इस देश को ऋचा बनाने की विद्या दी और गायत्री मन्त्र की रचना की जो भारत के हृदय में और जिह्ना पर हज़ारों सालों से आज तक अनवरत निवास कर रहा है।


7. भारद्वाज :    वैदिक ऋषियों में भारद्वाज-ऋषि का उच्च स्थान है। भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं। भारद्वाज ऋषि राम के पूर्व हुए थे, लेकिन एक उल्लेख अनुसार उनकी लंबी आयु का पता चलता है कि वनवास के समय श्रीराम इनके आश्रम में गए थे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता-द्वापर का सन्धिकाल था। माना जाता है कि भरद्वाजों में से एक भारद्वाज विदथ ने दुष्यन्त पुत्र भरत का उत्तराधिकारी बन राजकाज करते हुए मन्त्र रचना जारी रखी।

ऋषि भारद्वाज के पुत्रों में 10 ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा हैं और एक पुत्री जिसका नाम 'रात्रि' था, वह भी रात्रि सूक्त की मन्त्रदृष्टा मानी गई हैं। ॠग्वेद के छठे मण्डल के द्रष्टा भारद्वाज ऋषि हैं। इस मण्डल में भारद्वाज के 765 मन्त्र हैं। अथर्ववेद में भी भारद्वाज के 23 मन्त्र मिलते हैं। 'भारद्वाज-स्मृति' एवं 'भारद्वाज-संहिता' के रचनाकार भी ऋषि भारद्वाज ही थे। ऋषि भारद्वाज ने 'यन्त्र-सर्वस्व' नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्ममुनि ने 'विमान-शास्त्र' के नाम से प्रकाशित कराया है। इस ग्रन्थ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिए विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन मिलता है।


इसके अलावा मान्यता हैं कि अगस्त्य, कष्यप, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, ऐतरेय, कपिल, जेमिनी, गौतम आदि सभी ऋषि उक्त सात ऋषियों के कुल के होने के कारण इन्हें भी वही दर्जा प्राप्त है।

Tuesday, May 10, 2022

Sunday, April 10, 2022

Thursday, March 10, 2022

जजिया कर

 

आइए जाने 'जजिया'  कर क्या था । 


मुस्लिम शासकों के समय में अपने धर्म में बने रहने और उसका पालन करने के लिए गैर मुस्लिमों को 'जजिया' कर देना पड़ता था । 


जज़िया एक प्रकार का धार्मिक कर है। इसे मुस्लिम राज्य में रहने वाली गैर मुस्लिम जनता (जिसे काफ़ि़र बुलाया जाता था) से वसूल किया जाता है। 

इस्लामी राज्य में केवल मुसलमानों को ही रहने की अनुमति थी और यदि कोई गैर-मुसलमान उस राज्य में रहना चाहे तो उसे जज़िया देना होगा। इसे देने के बाद गैर मुस्लिम लोग इस्लामिक राज्य में अपने धर्म का पालन कर सकते थे। जज़िया को कुछ लोगों द्वारा एक मुस्लिम राज्य में गैर-मुसलमानों के इस्लाम में परिवर्तित नहीं होने के लिए एक बैज (BADGE) या अपमान की स्थिति के रूप में भी समझा गया है, 

कुरान गैर-मुसलमानों को जज़िया का भुगतान करने के लिए तब तक कहता है "जब तक वे अपमानित नहीं हो जाते हैं" - कुरान सूरा 9 आयत 29

जज़िया कम से कम कुछ समय और स्थानों के लिए राजस्व का एक बड़ा स्रोत (जैसे उमय्यद युग में) था | पाकिस्तानी तालिबान और आईएसआईएस (ISIS) इसे अभी भी लागू करने की कोशिश कर रही है |


भारत में जजिया कर :

भारत में जजिया कर लगाने का प्रथम साक्ष्य मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के बाद देखने को मिलता है। सर्वप्रथम उसने ही भारत में सिंध प्रान्त के देवल में जजिया कर लगाया था। 

इसके बाद जजिया कर लगाने वाला दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान फिरोज तुगलक था। इसने जजिया को खराज (भूराजस्व) से निकालकर पृथक कर के रूप में बसूला। इससे पूर्व ब्राह्मणों को इस कर से मुक्त रखा गया था। यह पहला सुल्तान था जिसने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगा दिया। फिरोज तुगलक के ऐसा करने के विरोध में दिल्ली के ब्राह्मणों ने भूख हड़ताल कर दी। फिर भी फिरोज तुगलक ने इसे समाप्त करने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। अन्त में दिल्ली की जनता ने ब्राह्मणों के बदले स्वयं जजिया देने का निर्णय लिया। इसके बाद लोदी वंश के शासक सिकंदर लोदी ने जज़िया कर लगाया।

दिल्ली सल्तनत के फैलने के साथ जजिया कर का क्षेत्र भी बढ़ा। अलाउद्दीन खिलजी ने जजिया और खरज न दे पाने वालों को गुलाम बनाने का कानून बनाया। उसके कर्मचारी ऐसे लोगों को गुलाम बनाकर सल्तनत के शहरों में बेचते थे जहाँ गुलाम श्रमिकों की भारी मांग रहती थी। मुस्लिम दरबारी इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी ने लिखा है कि बयानह के काजी मुघिसुद्दीन ने अलाउद्दीन को सलाह दी थी कि इस्लाम की जरूरत है कि हिन्दुओं पर जजिया लगाया जाय ताकि हिन्दुओं के प्रति निरादर दिखाया जा सके और उन्हें अपमानित किया जा सके। उसने यह भी सलाह दी थी कि जजिया लगाना सुल्तान का मजहबी फर्ज है। 


सल्तनत के बाहर के मुसलमान शासकों ने भी हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया। कश्मीर में सर्वप्रथम जजिया कर सिकंदर शाह द्वारा लगाया गया। यह एक धर्मान्ध शासक था और उसने हिन्दुओं पर भारी अत्याचार किये। उसके बाद इसका पुत्र जैनुल आबदीन (1420-70 ईo) शासक बना और सिकन्दर द्वारा लगाए गए जजिया को समाप्त कर दिया। जजिया कर को समाप्त करने वाला यह पहला शासक था। 

गुजरात में जजिया सर्वप्रथम अहमदशाह (1411-42 ईo) के समय लगाया गया। उसने इतनी कड़ाई से जजिया वसूला कि बहुत से हिन्दू मजबूर होकर मुसलमान बन गए।


शेरशाह के समय जजिया को 'नगर-कर' की संज्ञा दी गयी।


जजिया कर को समाप्त करने वाला पहला मुगल शासक अकबर था। अकबर ने 1564 ईo में जज़िया कर समाप्त किया, लेकिन 1575 ईo में पुनः लगा दिया। इसके बाद 1579-80 ईo में पुनः समाप्त कर दिया। औरंगजेब ने 1679 ईo में जजिया कर लगाया। उसके राज्य में जजिया कर के विरुद्ध हिन्दुओं ने विद्रोह भी किया जिससे बीच-बीच में कुछ स्थानों पर जजिया हटा लिया गया। 

1712 ईo में जहाँदारशाह ने अपने मंत्री जुल्फिकार खां व असद खां के कहने पर जजिया को विधिवत रूप से समाप्त कर दिया। इसके बाद फर्रूखशियर ने 1713 ईo में जज़िया कर को हटा दिया किन्तु 1717 ईo में इसने जजिया पुनः लगा दिया। अन्त में 1720 ईo में मुहम्मद शाह रंगीला ने जयसिंह के अनुरोध पर जजिया कर को सदा के लिए समाप्त कर दिया।

Friday, February 11, 2022

हिन्दू धर्म की रक्षा

 सनातन हिन्दु पुनर्जागरण


'सनातन धर्म और केवल धर्म ही हिन्दुस्थानका जीवन है । जिस दिन यह नष्ट हो जाएगा, उस दिन हिन्दुस्थानका अन्त हो जाएगा । आप कितनी भी राजनीति अथवा समाजसुधार करें, भले ही कुबेरकी सम्पूर्ण सम्पत्ति इस आर्यभूमिके प्रत्येक पुत्रपर बहा दें, सबकुछ निष्फल होगा ।’ 

– स्वामी विवेकानंद


सनातन धर्म की वर्तमान स्थिति 


सनातन धर्म आज सर्व दिशाओं से संकटों से घिरा हुआ है ।  हिन्दूद्वेषी और धर्मद्रोही लोग सार्वजनिक रूप से हिन्दू धर्म पर आघात कर रहे हैं । धर्म पर आघात करने वाले अपने कट्टरपन्थी पूर्वजों की परम्परा आगे बढा रहे हैं । इसके अतिरिक्त, स्वयं को धर्म-निरपेक्ष, आधुनिक, विज्ञानवादी और समाज सुधारक कहलाने वाले कुछ हिन्दू भी सनातन धर्म पर आघात करने लगे हैं । यदि हमें हमारे पूर्वजों द्वारा रक्षित महान हिन्दू धर्म  बचाना है, तो प्रत्येक हिन्दू को धर्म पर हो रहे आघातों के विषय में समझकर उन्हें रोकने के लिए कार्य अवश्य करना चाहिए ।



 सनातन धर्म रक्षा हेतु ये कार्य अवश्य करें ।


  • फोटो, विज्ञापन, नाटक, सम्मेलन, समाचार-पत्र, उत्पाद आदि माध्यमों द्वारा होने वाला देवताओं और राष्ट्रपुरुषों का अनादर रोकें ।

  • हिन्दू देवताओं की मूर्तियों की तोडफोड का विरोध करें,  एवं इसके लिए अन्य हिन्दुओं को भी जागृत करें ।

  • हिन्दुओं की धार्मिक शोभा यात्राओं पर (जुलूसों पर) होने वाले आक्रमण, गोहत्या और ‘लव जिहाद’ जैसे हिन्दू  विरोधी षड्यन्त्रों को रोके एवं अन्य हिन्दुओं को भी जागृत करें ।

  • प्रलोभन दिखाकर अथवा बल पूर्वक किए जाने वाले हिन्दुओं के धर्म- परिवर्तन का विरोध करें ।

  • सोशल मीडिया पर हिंदू धर्म के प्रति होने वाले अनादर का मजबूती के साथ विरोध करें ।

  • हिन्दू धर्म, देवता, धर्मग्रन्थ, सन्त और राष्ट्र पुरुषों की आलोचना करने वालों के विरुद्ध पुलिस में परिवाद (शिकायत) लिखवाएं ।

  • धार्मिक तथा सामाजिक उत्सवों में अनुचित कृत्य ( जैसे बलपूर्वक धन संकलन, अश्‍लील नृत्य, महिलाओं से छेडछाड, मद्यपान इत्यादि) न होने दें ।

  • अपने परिवार एवं बच्चों को अपने धर्म के प्रति जागरूक बनाएं तथा उन्हें अपने सनातन धर्म पर गर्व करना सिखाए ।

  • अपने क्षेत्र में आश्रम, गुरुकुल की तर्ज पर ऐसी पाठशाला की व्यवस्था करें जहां हिंदू धर्म वेद पुराण एवं अन्य धार्मिक बातों की जानकारी दी जा सके ।

  • किसी भी हिंदू भाई पर किसी भी प्रकार के अत्याचार होने पर सभी हिंदू भाई मिलकर उसका साथ अवश्य दें ।

  • अपने आसपास रह रहे हिंदू भाइयों का समूह बना कर समय-समय पर सनातन धर्म की रक्षा हेतु चर्चा करें ।

  • सभी हिंदू भाइयों में यह संदेश प्रवाहित करें कि हम चाहे किसी भी हिंदू प्रजाति से हो परंतु हम सर्वप्रथम एक हिंदू हैं ।

  • अपने क्षेत्र में समय-समय पर सनातन धर्म के ध्वज तले निशुल्क, निस्वार्थ सेवा कार्य करते हुए  समाज में हिंदू एकता का संदेश प्रवाहित करें ।


Sunday, January 9, 2022

इस्लामिक स्टेट खोरासान ।

 

भारत में इस्लामिक आतंकवाद का नया चेहरा...