Thursday, March 10, 2022

जजिया कर

 

आइए जाने 'जजिया'  कर क्या था । 


मुस्लिम शासकों के समय में अपने धर्म में बने रहने और उसका पालन करने के लिए गैर मुस्लिमों को 'जजिया' कर देना पड़ता था । 


जज़िया एक प्रकार का धार्मिक कर है। इसे मुस्लिम राज्य में रहने वाली गैर मुस्लिम जनता (जिसे काफ़ि़र बुलाया जाता था) से वसूल किया जाता है। 

इस्लामी राज्य में केवल मुसलमानों को ही रहने की अनुमति थी और यदि कोई गैर-मुसलमान उस राज्य में रहना चाहे तो उसे जज़िया देना होगा। इसे देने के बाद गैर मुस्लिम लोग इस्लामिक राज्य में अपने धर्म का पालन कर सकते थे। जज़िया को कुछ लोगों द्वारा एक मुस्लिम राज्य में गैर-मुसलमानों के इस्लाम में परिवर्तित नहीं होने के लिए एक बैज (BADGE) या अपमान की स्थिति के रूप में भी समझा गया है, 

कुरान गैर-मुसलमानों को जज़िया का भुगतान करने के लिए तब तक कहता है "जब तक वे अपमानित नहीं हो जाते हैं" - कुरान सूरा 9 आयत 29

जज़िया कम से कम कुछ समय और स्थानों के लिए राजस्व का एक बड़ा स्रोत (जैसे उमय्यद युग में) था | पाकिस्तानी तालिबान और आईएसआईएस (ISIS) इसे अभी भी लागू करने की कोशिश कर रही है |


भारत में जजिया कर :

भारत में जजिया कर लगाने का प्रथम साक्ष्य मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के बाद देखने को मिलता है। सर्वप्रथम उसने ही भारत में सिंध प्रान्त के देवल में जजिया कर लगाया था। 

इसके बाद जजिया कर लगाने वाला दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान फिरोज तुगलक था। इसने जजिया को खराज (भूराजस्व) से निकालकर पृथक कर के रूप में बसूला। इससे पूर्व ब्राह्मणों को इस कर से मुक्त रखा गया था। यह पहला सुल्तान था जिसने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगा दिया। फिरोज तुगलक के ऐसा करने के विरोध में दिल्ली के ब्राह्मणों ने भूख हड़ताल कर दी। फिर भी फिरोज तुगलक ने इसे समाप्त करने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। अन्त में दिल्ली की जनता ने ब्राह्मणों के बदले स्वयं जजिया देने का निर्णय लिया। इसके बाद लोदी वंश के शासक सिकंदर लोदी ने जज़िया कर लगाया।

दिल्ली सल्तनत के फैलने के साथ जजिया कर का क्षेत्र भी बढ़ा। अलाउद्दीन खिलजी ने जजिया और खरज न दे पाने वालों को गुलाम बनाने का कानून बनाया। उसके कर्मचारी ऐसे लोगों को गुलाम बनाकर सल्तनत के शहरों में बेचते थे जहाँ गुलाम श्रमिकों की भारी मांग रहती थी। मुस्लिम दरबारी इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी ने लिखा है कि बयानह के काजी मुघिसुद्दीन ने अलाउद्दीन को सलाह दी थी कि इस्लाम की जरूरत है कि हिन्दुओं पर जजिया लगाया जाय ताकि हिन्दुओं के प्रति निरादर दिखाया जा सके और उन्हें अपमानित किया जा सके। उसने यह भी सलाह दी थी कि जजिया लगाना सुल्तान का मजहबी फर्ज है। 


सल्तनत के बाहर के मुसलमान शासकों ने भी हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया। कश्मीर में सर्वप्रथम जजिया कर सिकंदर शाह द्वारा लगाया गया। यह एक धर्मान्ध शासक था और उसने हिन्दुओं पर भारी अत्याचार किये। उसके बाद इसका पुत्र जैनुल आबदीन (1420-70 ईo) शासक बना और सिकन्दर द्वारा लगाए गए जजिया को समाप्त कर दिया। जजिया कर को समाप्त करने वाला यह पहला शासक था। 

गुजरात में जजिया सर्वप्रथम अहमदशाह (1411-42 ईo) के समय लगाया गया। उसने इतनी कड़ाई से जजिया वसूला कि बहुत से हिन्दू मजबूर होकर मुसलमान बन गए।


शेरशाह के समय जजिया को 'नगर-कर' की संज्ञा दी गयी।


जजिया कर को समाप्त करने वाला पहला मुगल शासक अकबर था। अकबर ने 1564 ईo में जज़िया कर समाप्त किया, लेकिन 1575 ईo में पुनः लगा दिया। इसके बाद 1579-80 ईo में पुनः समाप्त कर दिया। औरंगजेब ने 1679 ईo में जजिया कर लगाया। उसके राज्य में जजिया कर के विरुद्ध हिन्दुओं ने विद्रोह भी किया जिससे बीच-बीच में कुछ स्थानों पर जजिया हटा लिया गया। 

1712 ईo में जहाँदारशाह ने अपने मंत्री जुल्फिकार खां व असद खां के कहने पर जजिया को विधिवत रूप से समाप्त कर दिया। इसके बाद फर्रूखशियर ने 1713 ईo में जज़िया कर को हटा दिया किन्तु 1717 ईo में इसने जजिया पुनः लगा दिया। अन्त में 1720 ईo में मुहम्मद शाह रंगीला ने जयसिंह के अनुरोध पर जजिया कर को सदा के लिए समाप्त कर दिया।